Triple Talaq | Divorce in Muslim Law with Shayara Bano Case Study | ट्रिपल तलाक
Triple Talaq | Divorce in Muslim Law with Shayara Bano Case Study | ट्रिपल तलाक
क्या था मामला
उत्तराखंड के काशीपुर की शायरा बानो ने साल 2016 में उच्चतम न्यायालय में अरजी दायर कर ट्रिपल तलाक, निकाह, हलाला तथा बहुविवाह प्रथा के चलन संवैधानिकता को चुनौती दी थी तथा अपनी अर्जी में मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत महिलाओं के साथ लैंगिक भेदभाव के मुद्दे, एक तरफा तलाक और संविधान में गारंटी के बावजूद पहली शादी के रहते हुए दूसरी शादी के मुद्दे पर विचार करने को कहा और साथ ही यह भी कहा कि तीन तलाक संविधान के अनच्छेद 14 व 15 के तहत मिले मौलिक अधिकारों का हनन है । इस अर्जी के बाद एक के बाद एक कई
याचिकाएं दायर की गई । एक मामले में उच्चतम न्यायालय के डबल बेंच ने भी खुद संज्ञान लेते हुए चीफ जस्टिस से आग्रह किया था की वह स्पेशल बेंच का गठन करे, ताकि भेदभाव की शिकार मुस्लिम महिलाओं के मामले के देखा जा सके । जिसके बाद उच्चतम न्यायालय ने केन्द्र के अटॉर्नी जनरल और नेशनल लीगल सर्विस अथॉरिटी को जवाब दाखिल करने को कहा था ।
जवाब के केन्द्र की और से यह कहा गया कि संविधान कहता है कि, जो भी कानून मौलिक अधिकारो के खिलाफ है, वह कानून असंवैधानिक है । अतः कोर्ट को इस मामले को संविधान के दायरे में देखना चाहिए और यह मूल अधिकारों भी का उलंघन करता है, तथा तलाक महिलाओं के मान-सम्मान और समानता के अधिकार में दखल देता है । ऐसे में इसे असंवैधानिक घोषित किया जाए । आगे यह भी कहा कि पर्सनल लॉ धर्म का हिस्सा नहीं है और अनुच्छेद 25 के दायरे में शादी और तलाक नहीं है । अगर कोई कानून लिंग समानता, महिलाओं के अधिकार और उनकी गरिमा को प्रभावित करता है तो वह कानून अमान्य होगा और ऐसे में तीन तलाक अवैध है ।
याचिकाकर्ता शायरा बानो की तरफ से विद्वान् अधिवक्ता राम जेठमलानी जी ने यह दलील दिया की अनुच्छेद 25 में धार्मिक प्रेक्टिस की बात है अतः तीन तलाक अनुच्छेद 25 के तहत संरक्षित नहीं हो सकता । मुस्लिम धार्मिक दर्शनशास्त्र में तीन तलाक को बुरा और पाप कहा गया है ऐसे में इसे धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के तहत संरक्षित कैसे किया जा सकता है तथा यह भी कहा गया कि "शादी तोड़ने के इस तरीके के पक्ष में कोई दलील नहीं दी जा सकती । शादी को एकतरफा ख़त्म करना घिनौना है । इस लिए इससे दूरी बरती जानी चाहिए । ऑल इंडिया मुस्लिम महिला पर्सनल बोर्ड की और से दलील की गई की तीन तलाक इस्लाम का मूल हिस्सा नहीं है और कुरान में इसका कहीं भी जिक्र नहीं किया गया है ।
वहीं तीन तलाक के पक्ष में मुस्लिम पर्सनल लॉ के और से यह कहा गया कि अनुच्छेद 25 यानी धार्मिक स्वतंत्रता के तहत परंपरा की बात है और संविधान परंपरा को संरक्षित करता है । सरकार चाहे तो पर्सनल लॉ को रेगुलेट करने के लिए कानून बना सकती है । विद्वान वकील कपिल सिब्बल ने आगे यह भी कहा कि " तीन तलाक पाप है और अवांछित है । हम भी बदलाव चाहते है, लेकिन पर्सनल लॉ में कोर्ट का दखल नहीं होना चाहिए । निकाहनामा में तीन तलाक न रखने के बारे में लड़की कह सकती है कि पति तीन तलाक नहीं कहेगा । मुस्लिम विधि में निकाहनामा एक कॉन्ट्रैक्ट है । सहमति से निकाह होता है और तलाक का प्रावधान उसी के दायरे में है ।
उच्चतम न्यायालय ने अपनी अभूतपूर्व निर्णय में पांच जजों के संवैधानिक पीढ़ के द्वारा 3:2 के बहुमत के निर्णय के आधार पर तिहरे तलाक (ट्रिपल तलाक) को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 के उल्लंघन करने के कारण असंवैधानिक घोषित किया और कहा कि संविधान का अनुच्छेद 14 समानता का अधिकार देता है तथा ट्रिपल तलाक मुस्लिम महिलाओं के मूलभूत अधिकारों का हनन करता है यह प्रथा बिना कोई मौका दिए शादी को ख़त्म कर देता है । कोर्ट ने मुस्लिम देशों में ट्रिपल तलाक पर लगे बैन का भी जिक्र किया और पूछा कि भारत इससे आजाद क्यों नहीं हो सकता । अन्य दी न्यायाधीश जिन्होंने उसके विरोध में मत किया था उन्होंने भी ट्रिपल तलाक को सही नहीं माना था ।
Triple Talaq | Divorce in Muslim Law with Shayara Bano Case Study | ट्रिपल तलाक
Reviewed by Gujju LLB
on
April 08, 2019
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